पल्लवन का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट करो

 पल्लवन का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट करो।

अथवा

पल्लवन का महत्त्व और विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

पल्लवन का अर्थ है- किसी कथन अथवा सूक्ति को विभिन्न उदाहरणों और प्रमाणों द्वारा विस्तृत करके लिखना। इसे हम विशदीकरण या विस्तारण भी कहते हैं। यह संक्षेपण का ठीक उल्टा है। संक्षेपण प्रायः मूल पाठ का लगभग एक-तिहाई होता है। इसमें शब्द सीमा का बन्धन होता है जबकि विस्तारण में ऐसी किसी सीमा का बन्धन नहीं रहता। हम विस्तारण सुविधानुसार अनुच्छेदों में लिख सकते हैं। संक्षेपण में किसी लेख भाषण आदि को इस रूप में छोटा (संक्षेप) करके लिखते हैं कि उसका केन्द्रीय मूल्य या कथ्य आ जाए तथा गौण बाते निकल जायें। इसके विपरीत पल्लवन में हम किसी सूक्ति, कहावत, काव्य पंक्ति, वाक्य, छन्द या लघु प्रोक्ति आदि का विस्तार करते हैं तथा यह प्रयास करते हैं कि संक्षेप में प्रस्तुत मूल कथ्य को लेकर विस्तार से समझाते हुए उदाहरणों द्वारा सन्तुष्ट करते हुए उसके विपक्ष में सम्भावित तर्कों को काटते हुए, उसे इतना विस्तार दें कि मूल कथ्य पूर्णरूप से स्पष्ट हो जाए।

पल्लवन की परिभाषा -पल्लवन की कुछ परिभाषाएँ निम्नवत् हैं 

(1) डॉ. वासुदेव नन्दन प्रसाद के अनुसार, "किसी सुगठित एवं गुम्फित विचार अथवा भाव के विस्तार को पल्लवन कहते हैं। " 

(2) प्रो. राजेन्द्र प्रसाद सिंह, “पल्लवन का अर्थ होता है, पल्लव उत्पन्न करना अर्थात् विषय का विस्तार करना।"

उक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कह सकते हैं कि "किसी सूक्ति, सुभाषित अथवा सुगठित तथा सुगुम्फित विचार वाले आदर्श वाक्य के मूल भाव का तर्कसम्मत शैली में विभिन्न उदाहरणों, विवरणों और दृष्टान्तों द्वारा किया गया परिवर्द्धन या पल्लवन ही विस्तारण है।

पल्लवन का महत्त्व और उपयोगिता–व्यावसायिक और प्रशासनिक क्षेत्र में संक्षेपण ने अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। हमारे दैनिक जीवन में संक्षेपण का जितना महत्त्व है उतना पल्लवन का नहीं। फिर भी पल्लवन का अपना अलग ही महत्त्व है। आप देख सकते हैं कि सभी भाषाओं में कुछ ऐसे लेखक और विचारक होते हैं जो अपने गम्भीर विचारों को ऐसी शैली में रखते हैं कि उनका यथार्थ भाव सरलता से सबकी समझ में नहीं आता। उनकी व्याख्या अथवा आशय समझने के लिए पल्लवन एक अच्छा माध्यम है— संस्कृत के सूत्र-ग्रन्थ, कारिका ग्रन्थ जो गम्भीर विचारों के आदर्श ग्रन्थ हैं। उन पर बड़े-बड़े व्याख्या ग्रन्थ लिखे गये हैं। किन्तु हिन्दी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और सरदार पूर्णसिंह तथा अंग्रेजी में फ्रांसिस बेकन जैसे लेखक हैं जिनके सुगुम्फित विचार वाले वाक्य व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं। ऐसे विचारकों के भावों को पल्लवन के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है। यही पल्लवन की उपयोगिता है।

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