पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

पियाजे के अनुसार अनुकूलन व व्यवस्थापन का अर्थ 

अनुकूलन -  परिवेश के साथ सीधे पारस्परीक क्रिया -प्रतिक्रिया के द्वारा योजनाएं बनाने को अनुकूलन कहते हैं । इसमें दो परस्पर पूरक गतिविधियां शामिल रहती है -समावेशीकरण तथा समायोजन। समावेशीकरण के दौरान हम बाहरी संसार को समझने के लिए अपनी  बनी हुई योजनाओं का उपयोग करते हैं उदाहरण के लिए जब कोई शिशु बार-बार चीजों को गिराता है तब वह उनका अपनी संवेदी क्रियात्मक योजना में समावेश कर रहा होता है और स्कूल पूर्व आयु की कोई बच्ची जब चिड़िया घर में पहली बार ऊट देखकर घोड़ा! चिल्लाती है ,तो वह अपनी अवधारणात्मक योजनाओं को खंगाल कर उस योजना को ढूँँढ़ निकालती है जो इस अजीब दिखने वाले जानवर से मिलती-जुलती है। समायोजन में यह देखने के बाद कि हमारे वर्तमान सोचने के तरीके परिवेश को पूरी तरह नहीं पकड़ पाते, हम नई योजनाएं बनाते हैं या पुरानी योजनाओं को संशोधित करते हैं। वह बच्चा जो वस्तुओं को विभिन्न तरीकों से गिराता है वह उनके अलग-अलग गुणों के अनुसार अपनी गिराने की योजना को संशोधित करता है। पियाजे के अनुसार समय बीतने के साथ -साथ समावेशीकरण और संयोजन के बीच का संतुलन बदलता रहता है जब बच्चों में अधिक बदलाव नहीं हो रहा होता है तब वे समायोजन की तुलना में समावेश अधिक करते हैं। पियाजे इसे संज्ञानात्मक संतुलन की स्थिति कहता है। जो उसकी दृष्टि में एक स्थिर सहज दशा है ।परंतु जब बच्चे तेजी से होते हुए संज्ञानात्मक परिवर्तनों से गुजर रहे होते हैं तब वे असंतुलन की स्थिति में होते हैं और एक तरह की संज्ञानात्मक उथल-पुथल का अनुभव करते हैं। उन्हें एहसास होता है कि नयी जानकारी उनकी वर्तमान  योजनाओ से मेल नहीं खाती, इसलिए वे समावेशीकरण से हटकर समायोजन की ओर उन्मुख हो जाते हैं ।पर जब वे अपनी योजनाओं को संशोधित कर लेते हैं तब वे फिर से समावेशीकरण की ओर लौटते हैं, और अपनी बदली हुई संरचनाओं का उपयोग करते हैं, जब तक कि उन्हें फिर से संशोधित करने की जरूरत नहीं पड़ती । पियाजे ने संतुलन और असंतुलन के बीच इस प्रकार डोलने को दर्शाने के  लिए संतुलनीयकरण शब्द का उपयोग किया है ।हर बार जब भी संतुलनीयकरण होता है, तो उससे अधिक कारगर योजनाएं उपजती है ।
व्यवस्थापन -व्यवस्थापन के द्वारा भी योजनाएं बदलती है ।यह प्रक्रिया परिवेश के साथ सीधे संपर्क से अलग हटकर, आंतरिक रूप से घटती है ।एक बारगी जब बच्चे नयी योजनाएँ बना लेते हैं तो वे उन्हें पुरानी योजनाओं से जोड़कर पुनर्व्यवस्थित करते हैं और इस तरह एक मजबूत अंतर्संबंधित संज्ञानात्मक तंत्र की रचना करते हैं ।उदाहरण के लिए 'गिराने' की गतिविधि में संलग्न बच्चा अंततः इसका संबंध 'फेंकने' से और फिर उसकी 'पास' और 'दूर' की विकसित होती समझ से जोड़ लेगा। पियाजे के अनुसार योजनाओं में सच्चे संतुलन की स्थिति तब आती है जब वे संरचनाओं के उस विस्तृत संजाल का अंग बन जाती है जिन्हें समग्र रूप से आसपास के संसार पर लागू किया जा सकता है।

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